चावल
आज मुझे चावल हाथ से खाने दो।
आज मुझे स्मृतियों की नदियों में बहने दो।
छुपा रखा है जो वर्षो से ह्रदय में,
आज मुझे वह सारा कुछ कहने दो।
लुप्त हो जाना है मुझे मेरे गाँव की उन गलियों में
गर्लफ्रेंड बॉयफ्रेंड से परे, मित्रो और सहेलियों में।
छीन लो मेरी ये उच्च-सामाजिक पदवी
नहीं ले जा पाओगे तुम मेरा बचपन तब भी।
आज मुझे शहर छोड़ कर
फिर अपने गाँव जाने दो
कुछ क्षण के लिए तो बस उतना ही सही
मुझे अपनेपन का आमोद पाने दो।
नहीं चाहिए मुझे चम्मच या काटा
और ना ही वह सफ़ेद मैदे का आटा।
थक चूका हु मैं बदल कर अपनी प्रकृति
लगाने दो मुझे कपाल पर, सरलता की भभूति।
आज मुझे पुनः स्वयं से मिलने दो
आज मुझे चावल हाथ से खाने दो।