स्पर्श
आज मुझे मृत्यु ने स्पर्श किया।
सोचा,
ना मैंने कुछ हासिल किया
ना कोई संघर्ष किया।
कभी जूझा नहीं कठिनाइयों से मैं।
ना लड़ा हूँ कोई युद्ध में,
कभी नहीं किसी पे वार किया।
कोई जंग अगर छेड़ी भी मैंने,
बस खुदको ही विध्वंस किया।
आज मुझे मृत्यु ने स्पर्श किया।
सोचा होगी कोई तो शक्ति
जिसने रक्षित मेरा वंश किया
मन ही मन धन्य होकर
उस शक्ति को अपना अंश दिया।
कुरुक्षेत्र नहीं है यह कोई
ना है ये हल्दी घाटी
जीवन यह अविरत मेरा
माँग रहा है बस समाधि।